- बोले- महागठबंधन हुआ तो वाराणसी सीट ही खतरे में
- यह भी कहा- बिना चैलेंज सारी शक्ति मोदी के पास, बॉस कौन है इस पर किसी को शक नहीं, पड़ोसियों से संबंध सुधारे
जवाब- भाजपा के पास 2019
के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, बस यही है कि विपक्ष बिखरा हुआ रहता है और
राहुल गांधी का मजाक उड़ाना। मोदी की वैश्विक छवि को जरूर जनता के बीच भाजपा
रखेगी। करप्शन सबसे बड़ा और प्रभावी मुद्दा होगा, ऐसा भी नहीं लग रहा। मोदी
सरकार तो हेल्थ स्कीम लाने में भी लेट हो गई है। आने वाली सरकार इसे जारी
रखेगी, कहा नहीं जा सकता है। राहुल गांधी काफी आक्रामक हो गए हैं और उन्हें
गंभीरता से लिया जा रहा है।
सवाल- 2014 में भाजपा ने गुजरात और हिन्दीभाषी राज्यों में लगभग 50% सीटें जीती थीं। यहां भाजपा सीटें गंवाती है तो कैसे और कहां से इनकी पूर्ति कर पाएगी?
जवाब- भाजपा हिंदी बेल्ट
के नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी। हालांकि महाराष्ट्र के बारे में अभी
ज्यादा कुछ नहीं कह पाऊंगा। महाराष्ट्र में शिवसेना की स्थिति देखनी पड़ेगी।
वह अंतिम समय तक कुछ भी कर सकती है। यहां पार्टी 2014 की तुलना में अधिक
सीटें जीत सकती है। पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ अधिक सीटें अवश्य भाजपा जीत
सकती है। गुजरात में भी नुकसान में रहेगी। तेलंगाना और आंध्र में भी
बीजेपी की स्थिति में परिवर्तन की संभावना नहीं है। तमिलनाडु में डीएमके
बीजेपी के साथ नहीं जाएगी। प. बंगाल में बीजेपी दूसरे नंबर पर रहेगी, लेकिन
वोट ही बढ़ा पाएगी, सीटें तृणमूल कांग्रेस की बढ़ेंगी। कर्नाटक में कांग्रेस
और जेडी एस का सही गठबंधन हुआ तो भाजपा को अधिक मुश्किल होगी। यूपी,
बिहार, गुजरात और एमपी में अवश्य नुकसान होगा। भाजपा अपने नुकसान की भरपाई कहीं से भी नहीं कर पाएगी।
सवाल- विपक्ष का आरोप है मोदी सरकार में सांप्रदायिकता-कट्टरता बढ़ी है। आप क्या मानते हैं?
जवाब- हां, यह बढ़ी है।
हिंदू दंगे भी बढ़े हैं। पर मुझे नहीं पता कि बहुमत हिंदू ऐसा चाहता भी है
कि नहीं। मोहन भागवत भी बीच-बीच में बोलते हैं। अयोध्या मुद्दे से भी लोग
उदासीन हो गए हैं। गौरी लंकेश की हत्या, मॉब लिंचिंग की घटनाएं तो यही
साबित करती हैं कि मोदी सरकार में अतिवाद बढ़ा है। एक्सट्रीमिस्ट बढ़े हैं और सांप्रदायिकता मुख्यधारा में आ गई है। संवैधानिक मूल्यों को चोट पहुंची
है। इतिहास नए सिरे से लिखने की कोशिश हो रही है। राष्ट्रीय स्तर पर यह
विशेषरूप से सुरक्षा को खतरा है ऐसा भी नहीं है।
सवाल- चेहराविहीन विपक्ष मोदी का सामना कैेसे करेगा ?
जवाब-2004 में भी यह
मुद्दा था कि वाजपेयी के सामने कौन? उस समय शरद पवार ने मुझसे कहा था कि हम
जीत रहे हैं, एक ही कमजोरी है कि चेहरा नही है। फिर यूपीए जीता। उस समय भी
सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया गया
था। ना ही मनमोहन सिंह को। मुझे लगता है कि चेहरा ना होना कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि यह फायदेमंद है।
सवाल- यदि चुनाव में मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री के पद के लिए सबसे सक्षम व्यक्ति कौन है और क्यों?
जवाब- एक अच्छा नाम शरद पवार ही हैं, उनके पास अच्छा अनुभव है, सबको साथ लेकर चल सकते हैं। बस उनकी
सेहत साथ देना चाहिए, सभी दलों को वे स्वीकार्य हो सकते हैं। राहुल गांधी
खुद एक बहुत अच्छा नाम हैं, कांग्रेस अगर सरकार बनाने का दावा करे तो।
मायावतीजी हैं, एचडी देवेगौड़ा भी हो सकते हैं।
जवाब- अभी सभी संवैधानिक
संस्थाओं को चोट पहुंचाई जा रही है। विरोधियों के विरुद्ध सीबीआई, इनकम
टैक्स, ईडी और अन्य एजेंसियों द्वारा हमला किया जा रहा है। ईमानदार अधिकारी
बहुत दबाव में हैं। मीडिया संस्थानों के खिलाफ भी काम हो रहा है जैसा कि
हमने एनडीटीवी के मामले में भी देखा, जिसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं था। लेकिन
इसकी तुलना इमरजेंसी से नहीं की जा सकती। लिंचिंग की घटनाएं भी लगातार हो
रही हैं। 2014 में बनी स्पष्ट बहुमत की सरकार भारतीय इतिहास की सबसे कम वोट
शेयर लेकर बनी स्पष्ट बहुमत की सरकार थी, सिर्फ 31 फीसदी वोट। मोदी सरकार
को आसानी से हराया जा सकता है। प. बंगाल में ममता बनर्जी, दक्षिण भारत में
क्षेत्रीय पार्टियां बहुत मजबूत हैं। सपा, बसपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ
तो वाराणसी सीट खतरे में पड़ जाएगी। यूपी में भाजपा फेल हो सकती है। बिहार में आरजेडी और सहयोगियों ने उपचुनावों में बहुत अच्छे परिणाम दिए हैं।
भाजपा 2019 में सबसे बड़ा दल हो सकती है, जो स्पष्ट बहुमत से बहुत दूर होगी। एनडीए को भी बहुमत नहीं मिलेगा। मुझे लगता है कि त्रिशंकु संसद होगी।
No comments:
Post a Comment