Monday, October 8, 2018

घूमने के मामले में भारतीय दुनिया में नंबर-1, लेकिन छुटि्टयों

इंटरनेशनल डेस्क. छुटि्टयों के दौरान घूमने-फिरने के मामले में भारतीय पूरी दुनिया में अव्वल हैं। हालांकि, छुटि्टयों के वक्त भी वे फोन से आजादी नहीं ले पाते। महज 54% लोग ही छुटि्टयों में फोन को खुद से दूर रख पाते हैं। वहीं, छुटि्टयों का सही इस्तेमाल करने के मामले में सऊदी अरब के लोग सबसे ज्यादा आगे हैं। यह बात मार्केट रिसर्च कंपनी आईपीएसओएस की 2018 की रिपोर्ट में सामने आई है।
आईपीएसओएस ने इस सर्वे के लिए 27 देशों के लोगों से बातचीत की। इस दौरान लोगों से तीन विषयों पर बात की गई। पहला विषय घर के बाहर छुटि्टयां बिताने का था। दूसरा छुटि्टयों के सही इस्तेमाल का। वहीं, तीसरे विषय में लोगों से पूछा गया कि क्या वे छुटि्टयों के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल छोड़ पाते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 61% लोग सालभर की अपनी कुल छुटि्टयों में से एक हफ्ता घर के बाहर बिताते हैं। इस मामले में भारतीय सबसे अव्वल हैं। 83% भारतीय छुटि्टयां बिताने के लिए बाहर जाने को तवज्जो देते हैं। वहीं, दुनिया के सबसे खुशहाल देश स्वीडन के 69% लोग ही बाहर घूमने का प्लान बना पाते हैं।
छुटि्टयों के दौरान मोबाइल फोन को दूर रखने के मामले में जर्मनी के लोग सबसे ज्यादा एक्टिव हैं। 69% जर्मन छुटि्टयों के वक्त फोन को खुद से दूर रखते हैं। हालांकि, भारतीय ऐसा नहीं कर पाते। 46% लोग घूमने के दौरान भी मोबाइल फोन से ज्यादा जुड़े रहते हैं।
छुटि्टयों का सही इस्तेमाल करने में सऊदी अरब के लोगों का नाम सबसे ऊपर आता है। यहां के 100 में से 81 लोग अपनी छुटि्टयां इस्तेमाल करने में माहिर हैं। इस लिस्ट में भारतीय पांचवें नंबर पर आते हैं। 28% भारतीय अपनी छुटि्टयों को लेकर कोई प्लानिंग नहीं कर पाते।
बात मेहनत की हो तो जापानियों को सबसे आगे रखा जाता है। छुटि्टयों को लेकर हुई रिसर्च में वे सबसे पीछे रहे। रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 34% जापानी ही छुट्‌टी की सही प्लानिंग कर पाते हैं। इनमें से 68% लोग छुट्‌टी के दौरान फोन का साथ नहीं छोड़ पाते। वहीं, बाहर घूमने जाने की प्लानिंग भी महज 24% जापानी ही करते हैं।
वॉशिंगटन. अमेरिका के मिशिगन में रहने वाला एक व्यक्ति 30 साल तक 10 किलो के एक पत्थर के टुकड़े को अड़ाकर दरवाजा बंद करता रहा। अब पता चला कि यह उल्कापिंड है। इसकी कीमत 1 लाख डॉलर (करीब 74 लाख) आंकी गई है। उसे यह उल्कापिंड उस वक्त उपहार के तौर पर मिला था, जब 1988 में उसने अपनी संपत्ति बेची थी।
उल्कापिंड के पुराने मालिक ने बताया कि 1930 के दशक की एक रात उन्हें यह पत्थर खेत में खुदाई के दौरान मिला। वह गर्म था।
नए मालिक ने कहा- मुझे यह पत्थर ठीकठाक आकार का लगा। लिहाजा, मैं इसका इस्तेमाल दरवाजे में अड़ाने के लिए करने लगा। हाल ही विचार आया कि क्यों न इसकी कीमत पता की जाए।
पत्थर की असलियत से अनजान व्यक्ति उसे मिशिगन यूनिवर्सिटी ले गया। यहां जियोलॉजी की प्रोफेसर मोनालिसा सर्बेस्कु इसका इसका आकार देखकर चौंक गईं। उन्होंने पत्थर का एक्सरे फ्लोरोसेंस से परीक्षण कराने का फैसला किया।
जांच में पता चला कि इस पत्थर में 88% लोहा, 12% निकल और कुछ मात्रा में भारी धातुएं इरीडियम, गैलियम और सोना भी है। मोनालिसा ने पत्थर का अंश वॉशिंगटन के स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट भेजा, जहां इसके उल्कापिंड होने की पुष्टि हुई।
प्रोफेसर के मुताबिक- मैंने इतना कीमती पत्थर अपनी जिंदगी में नहीं देखा था। मुझे बस इतना ही लगा कि हमारे सौरमंडल का कोई टुकड़ा टूटकर मेरे हाथ में आ गया। अमूमन उल्कापिंड में 90% से 95% लोहा ही होता है।
व्यक्ति ने बताया कि उसने मिशिगन से 48 किमी दूर एडमोर स्थित माउंट प्लीसेंट के पास स्थित अपना खेत एक किसान को बेचा था। किसान ने उन्हें एक पत्थर दिखाते हुए कहा कि यह आसमान से आपके ही खेत में गिरा था। लिहाजा इस पर आपका ही हक है।
पत्थर को एडमोर उल्कापिंड नाम दिया गया है, क्योंकि यह एडमोर में ही गिरा था। उल्कापिंड का नमूना कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्लेनेटरी-साइंस डिपार्टमेंट भेजा गया है ताकि उसका रासायनिक संघटन जांचा जा सके।
धरती का सबसे बड़ा उल्कापिंड नामीबिया के होबा में मिला था। इसका वजन 6600 किलो था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह करीब 80 हजार साल पहले धरती से टकराया था। इसका भी ज्यादातर हिस्सा लोहे और निकल का था।
मंगल और बृहस्पति के बीच कई क्षुद्रग्रह कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। इनके टुकड़े को ही उल्का कहा जाता है। कई बार उल्काएं धरती की कक्षा में प्रवेश कर जाती हैं। वायुमंडल के चलते छोटी उल्काएं जलकर खत्म हो जाती हैं, जबकि बड़े उल्कापिंड धरती से टकरा जाते हैं।